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त्रयोदश समुल्लास भाग -6

९१- और देखो, बड़ा भुईंडोल हुआ कि परमेश्वर का एक दूत उतरा और आ के कबर के द्वार पर से पत्थर लुढ़का के उस पर बैठा।। वह यहां नहीं है, जैसे उसने कहा वैसे जी उठा है।। जब वे उसके शिष्यों को सन्देश देने को जाती थीं, देखो यीशु उनसे आ मिला, कहा कल्याण हो और उन्होंने निकट आ, उसके पांव पकड़ के उसको प्रणाम किया।। तब यीशु ने कहा मत डरो, जाके मेरे भाइयों से कह दो वे गालील को जावें और वहां वे मुझे देखेंगे।। ग्यारह शिष्य गालील में उस पर्वत पर गये जो यीशु ने उन्हें बताया था।। और उन्होंने उसे देख के उसको प्रणाम किया पर कितनों का सन्देह हुआ।। यीशु ने उनके पास आ उनसे कहा, स्वर्ग में और पृथिवी पर समस्त अधिकार मुझको दिया गया है।। और देखो मैं जगत् के अन्त लों सब दिन तुम्हारे संग हूँ।। - इं० म० प० २८। आ० २। ६। ९। १०। १६। १७। १८। २०।।

(समीक्षक) यह बात भी मानने योग्य नहीं, क्योंकि सृष्टिक्रम और विद्याविरुद्ध है। प्रथम ईश्वर के पास दूतों का होना, उनको जहां-तहां भेजना, ऊपर से उतरना, क्या तहसीलदारी, कलेक्टरी के समान ईश्वर को बना दिया? क्या उसी शरीर से स्वर्ग को गया और जी उठा? क्योंकि उन स्त्रियों ने उसके पग पकड़ के प्रणाम किया तो क्या वही शरीर था? और वह तीन दिन लों सड़ क्यों न गया? और अपने मुख से सब का अधिकारी बनना केवल दम्भ की बात है। शिष्यों से मिलना और उनसे सब बातें करनी असम्भव हैं। क्योंकि जो ये बातें सच हों तो आजकल भी कोई क्यों नहीं जी उठते? और उसी शरीर से स्वर्ग को क्यों नहीं जाते? यह मत्तीरचित्त इञ्जील का विषय हो चुका। अब मार्करचित इञ्जील के विषय में लिखा जाता है।।९१।।

मार्क रचित इञ्जील

९२- यह क्या बढ़ई नहीं है। - इंनमार्क प० ६। आ० ३।।

(समीक्षक) असल में यूसफ बढ़ई था, इसलिये ईसा भी बढ़ई था। कितने ही वर्ष तक बढ़ई का काम करता था। पश्चात् पैगम्बर बनता-बनता ईश्वर का बेटा ही बन गया और जंगली लोगों ने बना लिया तभी बड़ी कारीगरी चलाई। काट कूट फूट फाट करना उसका काम है।।९२।।

लूका रचित इञ्जील

९३- यीशु ने उससे कहा तू मुझे उत्तम क्यों कहता है, कोई उत्तम नहीं है, केवल एक अर्थात् ईश्वर।। - इं० लू० प० १८। आ० १९।।

(समीक्षक) जब ईसा ही एक अद्वितीय ईश्वर कहाता है तो ईसाइयों ने पवित्रत्मा पिता और पुत्र तीन कहां से बना लिये? ।।९३।।

९४- तब उसे हेरोद के पास भेजा।। हेरोद यीशु को देख के अति आनन्दित हुआ क्योंकि वह उसको बहुत दिनों से देखने चाहता था इसलिये कि उसके विषय में बहुत सी बातें सुनी थीं और उसका कुछ आश्चर्य कर्म्म देखने की उसको आशा हुई।। उसने उससे बहुत बातें पूछीं परन्तु उसने उसे कुछ उत्तर न दिया।। - इं० लू० प० २३। आ० ७। ८। ९।।

(समीक्षक) यह बात मत्तीरचित में नहीं है इसलिए ये साक्षी बिगड़ गये। क्योंकि साक्षी एक से होने चाहियें और जो ईसा चतुर और करामाती होता तो उत्तर देता और करामात भी दिखलाता। इससे विदित होता है कि ईसा में विद्या और करामात कुछ भी न थी।।९४।।

योहन रचित सुसमाचार

९५- आदि में वचन था और वचन ईश्वर के संग था और वचन ईश्वर था।। वह आदि में ईश्वर के संग था।। सब कुछ उसके द्वारा सृजा गया और जो सृजा गया है कुछ भी उस बिना नहीं सृजा गया। उसमें जीवन था और वह जीवन मनुष्यों का उजियाला था।। - यो० प० १। आ० १। २। ३। ४।।

(समीक्षक) आदि में वचन विना वक्ता के नहीं हो सकता और जो वचन ईश्वर के संग था तो यह कहना व्यर्थ हुआ। और वचन ईश्वर कभी नहीं हो सकता क्योंकि जब वह आदि में ईश्वर के संग था तो पूर्व वचन वा ईश्वर था; यह नहीं घट सकता। वचन के द्वारा सृष्टि कभी नहीं हो सकती जब तक उसका कारण न हो। और वचन के विना भी चुपचाप रह कर कर्त्ता सृष्टि कर सकता है। जीवन किस में वा क्या था, इस वचन से जीव अनादि मानोगे, जो अनादि है तो आदम के नथुनों में श्वास फूंकना झूठा हुआ और क्या जीवन मनुष्यों ही का उजियाला है; पश्वादि का नहीं? ।।९५।।

९६- और बियारी के समय में जब शैतान शिमोन के पुत्र यिहूदा इस्करियोती के मन में उसे पकड़वाने का मत डाल चुका था।। - यो० प० १३। आ० २।।

(समीक्षक) यह बात सच नहीं। क्योंकि जब कोई ईसाइयों से पूछेगा कि शैतान सब को बहकाता है तो शैतान को कौन बहकाता है? जो कहो शैतान आप से आप बहकता है तो मनुष्य भी आप से आप बहक सकते हैं पुनः शैतान का क्या काम? और यदि शैतान का बनाने और बहकाने वाला परमेश्वर है तो वही शैतान का शैतान ईसाइयों का ईश्वर ठहरा। परमेश्वर ही ने सब को उसके द्वारा बहकाया। भला ऐसे काम ईश्वर के हो सकते हैं? सच तो यही है कि यह पुस्तक ईसाइयों का और ईसा ईश्वर का बेटा जिन्होंने बनाये वे शैतान हों तो हों किन्तु न यह ईश्वरकृत पुस्तक, न इसमें कहा ईश्वर और न ईसा ईश्वर का बेटा हो सकता है।।९६।।

९७- तुम्हारा मन व्याकुल न होवे। ईश्वर पर विश्वास करो और मुझ पर विश्वास करो।। मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं। नहीं तो मैं तुम से कहता मैं तुम्हारे लिये स्थान तैयार करने जाता हूँ।। और जो मैं जाके तुम्हारे लिये स्थान तैयार करूं तो फिर आके तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा कि जहां मैं रहूं तहां तुम भी रहो।। यीशु ने उससे कहा मैं ही मार्ग और सत्य और जीवन हूँ। विना मेरे द्वारा से कोई पिता के पास नहीं पहुँचता है।। जो तुम मुझे जानते तो मेरे पिता को भी जानते।। - यो० प० १४। आ० १। २। ३। ६। ७।।

(समीक्षक) अब देखिये ! ये ईसा के वचन क्या पोपलीला से कमती हैं? जो ऐसा प्रपंच न रचता तो उसके मत में कौन फंसता? क्या ईसा ने अपने पिता को ठेके में ले लिया है? और जो वह ईसा के वश्य है तो पराधीन होने से वह ईश्वर ही नहीं। क्योंकि ईश्वर किसी की सिफारिश नहीं सुनता। क्या ईसा के पहले कोई भी ईश्वर को नहीं प्राप्त हुआ होगा? ऐसा स्थान आदि का प्रलोभन देता और जो अपने मुख से आप मार्ग, सत्य और जीवन बनता है वह सब प्रकार से दम्भी कहाता है। इससे यह बात सत्य कभी नहीं हो सकती।।९७।।

९८- मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ जो मुझ पर विश्वास करे। जो काम मैं करता हूँ उन्हें वह भी करेगा और इनसे बड़े काम करेगा।। - यो० प० १४। आ० १२।।

(समीक्षक) अब देखिये ! जो ईसाई लोग ईसा पर पूरा विश्वास रखते हैं वैसे ही मुर्दे जिलाने आदि का काम क्यों नहीं कर सकते? और जो विश्वास से भी आश्चर्य काम नहीं कर सकते तो ईसा ने भी आश्चर्य कर्म नहीं किये थे ऐसा निश्चित जानना चाहिये। क्योंकि स्वयम् ईसा ही कहता है कि तुम भी आश्चर्य काम करोगे तो भी इस समय ईसाई एक भी नहीं कर सकता तो किसकी हिये की आंख फूट गई है वह ईसा को मुर्दे जिलाने आदि काम का कर्त्ता मान लेवे।।९८।।

९९- जो अद्वैत सत्य ईश्वर है।। - यो०प० १७। आ० ३।।

(समीक्षक) जब अद्वैत एक ईश्वर है तो ईसाइयों का तीन कहना सर्वथा मिथ्या है।।९९।।

इसी प्रकार बहुत ठिकाने इञ्जील में अन्यथा बातें भरी हैं।

योहन के प्रकाशित वाक्य

अब योहन की अद्भुत बातें सुनो -

१००- और अपने-अपने शिर पर सोने के मुकुट दिये हुए थे।। और सात अग्निदीपक सिहासन के आगे जलते थे जो ईश्वर के सातों आत्मा हैं। और सिहासन के आगे कांच का समुद्र है और सिहासन के आस-पास चार प्राणी हैं जो आगे और पीछे नेत्रें से भरे हैं।। - यो० प्र० प० ४। आ० ४। ५। ६।।

(समीक्षक) अब देखिये ! एक नगर के तुल्य ईसाइयों का स्वर्ग है। और इनका ईश्वर भी दीपक के समान अग्नि है और सोने का मुकुटादि आभूषण धारण करना और आगे पीछे नेत्रें का होना असम्भावित है। इन बातों को कौन मान सकता है? और वहां सिहादि चार पशु भी लिखे हैं।।१००।।

१०१- और मैंने सिहासन पर बैठने हारे के दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखा जो भीतर और पीठ पर लिखा हुआ था और सात छापों से उस पर छाप दी हुई थी।। यह पुस्तक खोलने और उसकी छापें तोड़ने योग्य कौन है।। और न स्वर्ग में और न पृथिवी पर न पृथिवी के नीचे कोई वह पुस्तक खोल अथवा उसे देख सकता था।। और मैं बहुत रोने लगा इसलिए कि पुस्तक खोलने और पढ़ने अथवा उसे देखने योग्य कोई नहीं मिला।। - यो० प्र० पर्व० ५। आ० १। २। ३। ४।।

(समीक्षक) अब देखिये ! ईसाइयों के स्वर्ग में सिहासनों और मनुष्यों का ठाठ और पुस्तक कई छापों से बंध किया हुआ जिसको खोलने आदि कर्म करने वाला स्वर्ग और पृथिवी पर कोई नहीं मिला। योहन का रोना और पश्चात् एक प्राचीन ने कहा कि वही ईसा खोलने वाला है। प्रयोजन यह है कि जिसका विवाह उसका गीत! देखो! ईसा ही के ऊपर सब माहात्म्य झुकाये जाते हैं परन्तु ये बातें केवल कथनमात्र हैं।।१०१।।

१०२- और मैंने दृष्टि की और देखो सिहासन के चारों प्राणियों के बीच में और प्राचीनों के बीच में एक मेम्ना जैसा बंध किया हुआ खड़ा है जिसके सात सींग और सात नेत्र हैं जो सारी पृथिवी में भेजे हुए ईश्वर के सातों आत्मा हैं।। - यो० प्र० प० ५। आ० ६।।

(समीक्षक) अब देखिये इस योहन के स्वप्न का मनोव्यापार ! उस स्वर्ग के बीच में सब ईसाई और चार पशु तथा ईसा भी है और कोई नहीं! यह बड़ी अद्भुत बात हुई कि यहां तो ईसा के दो नेत्र थे और सींग का नाम भी न था और स्वर्ग में जाके सात सींग और सात नेत्र वाला हुआ ! और वे सातों ईश्वर के आत्मा ईसा के सींग और नेत्र बन गए थे ! हाय ! ऐसी बातों को ईसाइयों ने क्यों मान लिया? भला कुछ तो बुद्धि काम में लाते।।१०२।।

१०३- और जब उसने पुस्तक लिया तब चारों प्राणी और चौबीसों प्राचीन मेम्ने के आगे गिर पड़े और हर एक के पास वीणा थी और धूप से भरे हुए सोने के पियाले जो पवित्र लोगों की प्रार्थनाएं हैं।। - यो० प्र० प० ५। आ० ८।।

(समीक्षक) भला जब ईसा स्वर्ग में न होगा तब ये बिचारे धूप, दीप, नैवेद्य, आर्ति आदि पूजा किसकी करते होंगे? और यहां प्रोटेस्टेंट ईसाई लोग बुत्परस्ती (मूर्तिपूजा) का खण्डन करते हैं और इनका स्वर्ग बुत्परस्ती का घर बन रहा है।।१०३।।

१०४- और जब मेम्ने ने छापों में से एक को खोला तब मैंने दृष्टि की चारों प्राणियों में से एक को जैसे मेघ गर्जने के शब्द को यह कहते हुए सुना कि आ और देख।। और मैंने दृष्टि की और देखो एक श्वेत घोड़ा है और जो उस पर बैठा है उस पास धनुष् है और उसे मुकुट दिया गया और वह जय करता हुआ और जय करने को निकला।। और जब उसने दूसरी छाप खोली।। दूसरा घोड़ा जो लाल था निकला उसको दिया गया कि पृथिवी पर से मेल उठा देवे।। और जब उसने तीसरी छाप खोली; देखो एक काला घोड़ा है।। और जब उसने चौथी छाप खोली।। और देखो एक पीला सा घोड़ा है और जो उस पर बैठा है उसका नाम मृत्यु है; इत्यादि।। - यो० प्र० प० ६। आ० १। २। ३। ४। ५। ७। ८।।

(समीक्षक) अब देखिये यह पुराणों से भी अधिक मिथ्या लीला है वा नहीं? भला! पुस्तकों के बन्धनों के छापे के भीतर घोड़ा सवार क्योंकर रह सके होंगे? यह स्वप्ने का बरड़ाना जिन्होंने इसको भी सत्य माना है। उनमें अविद्या जितनी कहें उतनी ही थोड़ी है।।१०४।।

१०५- और वे बड़े शब्द से पुकारते थे कि हे स्वामी पवित्र और सत्य! कब लों तू न्याय नहीं करता है और पृथिवी के निवासियों से हमारे लोहू का पलटा नहीं लेता है।। और हर एक को उजला वस्त्र दिया गया और उनसे कहा गया कि जब लों तुम्हारे संगी दास भी और तुम्हारे भाई जो तुम्हारी नाईं बंध किये जाने पर हैं न पूरे हों तब लों और थोड़ी बेर विश्राम करो।। - यो० प्र० प० ६। आ० १०। ११।।

(समीक्षक) जो कोई ईसाई होंगे वे दौड़े सुपुर्द होकर ऐसे न्याय कराने के लिये रोया करेंगे। जो वेदमार्ग का स्वीकार करेगा उसके न्याय होने में कुछ भी देर न होगी। ईसाइयों से पूछना चाहिये क्या ईश्वर की कचहरी आजकल बन्द है? और न्याय का काम भी नहीं होता? न्यायाधीश निकम्मे बैठे हैं? तो कुछ भी ठीक-ठीक उत्तर न दे सकेंगे। और ईश्वर को भी बहका कर और इनका ईश्वर बहक भी जाता है क्योंकि इनके कहने से झट इनके शत्रु से पलटा लेने लगता है। और दंशिले स्वभाव वाले हैं कि मरे पीछे स्ववैर लिया करते हैं, शान्ति कुछ भी नहीं। और जहां शान्ति नहीं वहां दुःख का क्या पारावार होगा।।१०५।।

१०६- और जैसे बड़ी बयार से हिलाए जाने पर गूलर के वृक्ष से उसके कच्चे गूलर झड़ते हैं, तैसे आकाश के तारे पृथिवी पर गिर पड़े।। और आकाश पत्र की नाईं जो लपेटा जाता है अलग हो गया।। - यो० प्र० प० ६। आ० १३। १४।।

(समीक्षक) अब देखिये! योहन भविष्यद्वक्ता ने जब विद्या नहीं है तभी तो ऐसी अण्ड बण्ड कथा गाई। भला! तारे सब भूगोल हैं एक पृथिवी पर कैसे गिर सकते हैं? और सूर्यादि का आकर्षण उनको इधर-उधर क्यों आने जाने देगा? और क्या आकाश को चटाई के समान समझता है? यह आकाश साकार पदार्थ नहीं है जिस को कोई लपेटे वा इकट्ठा कर सके। इसलिये योहन आदि सब जंगली मनुष्य थे। उनको इन बातों की क्या खबर? ।।१०६।।

१०७- मैंने उनकी संख्या सुनी, इस्राएल के सन्तानों के समस्त कुल में से एक लाख चवालीस सहस्र पर छाप दी गई।। यिहूदा के कुल में से बारह सहस्र पर छाप दी गई।। - यो० प्र० प० ७। आ० ४। ५।।

(समीक्षक) क्या जो बाइबल में ईश्वर लिखा है वह इस्राएल आदि कुलों का स्वामी है वा सब संसार का? ऐसा न होता तो उन्हीं जंगलियों का साथ क्यों देता? और उन्हीं का सहाय करता था। दूसरे का नाम निशान भी नहीं लेता। इससे वह ईश्वर नहीं। और इस्राएल कुलादि के मनुष्यों पर छाप लगाना अल्पज्ञता अथवा योहन की मिथ्या कल्पना है।।१०७।।

१०८- इस कारण वे ईश्वर के सिहासन के आगे हैं और उसके मन्दिर में रात और दिन उसकी सेवा करते हैं।। - यो० प्र० प० ७। आ० १५।।

(समीक्षक) क्या यह महाबुत्परस्ती नहीं है? अथवा उनका ईश्वर देह- धारी मनुष्य तुल्य एकदेशी नहीं है? और ईसाइयों का ईश्वर रात में सोता भी नहीं है । यदि सोता है तो रात में पूजा क्योंकर करते होंगे? तथा उसकी नींद भी उड़ जाती होगी और जो रात दिन जागता होगा तो विक्षिप्त वा अति रोगी होगा।।१०८।।

१०९- और दूसरा दूत आके वेदी के निकट खड़ा हुआ जिस पास सोने की धूपदानी थी और उसको बहुत धूप दिया गया।। और धूप का धुंआ पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के संग दूत के हाथ में से ईश्वर के आगे चढ़ गया।। और दूत ने वह धूपदानी लेके उसमें वेदी की आग भर के उसे पृथिवी पर डाला और शब्द और गर्जन और बिजलियाँ और भुईंडोल हुए।। - यो० प्र० प० ८। आ० ३। ४। ५।।

(समीक्षक) अब देखिये ! स्वर्ग तक वेदी, धूप, दीप, नैवेद्य, तुरही के शब्द होते हैं, क्या वैरागियों के मन्दिर से ईसाइयों का स्वर्ग कम है? कुछ धूम- धाम अधिक ही है।।१०९।।

११०- पहिले दूत ने तुरही फूंकी और लोहू से मिले हुए ओले और आग हुए और वे पृथिवी पर डाले गये और पृथिवी की एक तिहाई जल गई।। - यो० प्र० प० ८। आ० ७।।

(समीक्षक) वाह रे ईसाइयों के भविष्यद्वक्ता! ईश्वर, ईश्वर के दूत, तुरही का शब्द और प्रलय की लीला केवल लड़कों ही का खेल दीखता है।।११०।।

 

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Do these words of Jesus fall short of Poplila? If someone who did not create such a prank, who would get caught in his opinion? Has Jesus contracted his father? And if he is the subject of Jesus, then he is not only God by being subjugated. Because God does not listen to anyone's recommendation. Would there not have been any God before Jesus? Such a place gives the temptation of Adi and the one who makes himself the way, the truth and the life from his mouth is called Dambi in all ways. This can never be true. Like a city, it is a heaven for Christians. 

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