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त्रयोदश समुल्लास भाग -4

५१- और वह उस बैल को परमेश्वर के आगे बलि करे और हारून के बेटे याजक लोहू को निकट लावें और लोहू को यज्ञवेदी के चारों ओर जो मण्डली के तम्बू के द्वार पर है; छिड़कें।। तब वह उस भेंट के बलिदान की खाल निकाले और उसे टुकड़ा-टुकड़ा करे।। और हारून के बेटे याजक यज्ञवेदी पर आग रक्खें और उस पर लकड़ी चुनें।। और हारून के बेटे याजक उसके टुकड़ों को और सिर और चिकनाई को उन लकड़ियों पर जो यज्ञवेदी की आग पर हैं; विधि से धरें।। जिसतें बलिदान की भेंट होवे जो आग से परमेश्वर के सुगन्ध के लिये भेंट किया गया।। - तौन लै० व्यवस्था की पुस्तक, प० १। आ० ५। ६। ७। ८। ९।।

(समीक्षक) तनिक विचारिये! कि बैल को परमेश्वर के आगे उसके भक्त मारें और वह मरवावे और लोहू को चारों ओर छिड़कें, अग्नि में होम करें, ईश्वर सुगन्ध लेवे, भला यह कसाई के घर से कुछ कमती लीला है? इसी से न बाइबल ईश्वरकृत और न वह जंगली मनुष्य के सदृश लीलाधारी ईश्वर हो सकता है।।५१।।

५२- फिर परमेश्वर मूसा से यह कह के बोला।। यदि वह अभिषेक किया हुआ याजक लोगों के पाप के समान पाप करे तो वह अपने पाप के कारण जो उसने किया है अपने पाप की भेंट के लिए निसखोट एक बछिया को परमेश्वर के लिये लावे।। और बछिया के शिर पर अपना हाथ रक्खे और बछिया को परमेश्वर के आगे बलि करे।। - तौन लै० व्य० प० ४। आ० १। ३। ४।।

(समीक्षक) अब देखिये पापों के छुड़ाने के प्रायश्चित्त ! स्वयं पाप करें, गाय आदि उत्तम पशुओं की हत्या करें और परमेश्वर करवावे। धन्य हैं ईसाई लोग कि ऐसी बातों के करने करानेहारे को भी ईश्वर मान कर अपनी मुक्ति आदि की आशा करते हैं!!! ।।५२।।

५३- जब कोई अध्यक्ष पाप करे। तब वह बकरी का निसखोट नर मेम्ना अपनी भेंट के लिये लावे।। और उसे परमेश्वर के आगे बलि करे यह पाप की भेंट है।। -तौन लै० प० ४। आ० २२। २३। २४।।

(समीक्षक) वाह जी? वाह? यदि ऐसा है तो इनके अध्यक्ष अर्थात् न्यायाधीश तथा सेनापति आदि पाप करने से क्यों डरते होंगे? आप तो यथेष्ट पाप करें और प्रायश्चित्त के बदले में गाय, बछिया, बकरे आदि के प्राण लेवें। तभी तो ईसाई लोग किसी पशु वा पक्षी के प्राण लेने में शंकित नहीं होते। सुनो ईसाई लोगो! अब तो इस जंगली मत को छोड़ के सुसभ्य धर्ममय वेदमत को स्वीकार करो कि जिससे तुम्हारा कल्याण हो।।५३।।

५४- और यदि उसे भेड़ लाने की पूंजी न हो तो वह अपने किये हुए अपराध के लिए दो पिंडुकियाँ और कपोत के दो बच्चे परमेश्वर के लिये लावे।। और उसका सिर उसके गले के पास से मरोड़ डाले परन्तु अलग न करे।। उसके किये हुए पाप का प्रायश्चित्त करे और उसके लिये क्षमा किया जायगा।। पर यदि उसे दो पिंडुकियाँ और कपोत के दो बच्चे लाने की पूंजी न हो तो सेर भर चोखा पिसान का दशवाँ हिस्सा पाप की भेंट के लिये लावे• उस पर तेल न डाले।। और वह क्षमा किया जायेगा।। - तौन लै० प० ५। आ० ७। ८। १०। ११। १३।।

(समीक्षक) अब सुनिये! ईसाइयों में पाप करने से कोई धनाढ्य न डरता होगा और न दरिद्र भी, क्योंकि इनके ईश्वर ने पापों का प्रायश्चित्त करना सहज कर रक्खा है। एक यह बात ईसाइयों की बाइबल में बड़ी अद्भुत है कि विना कष्ट किये पाप से छूट जाय। क्योंकि एक तो पाप किया और दूसरे जीवों की हिसा की और खूब आनन्द से मांस खाया और पाप भी छूट गया। भला! कपोत के बच्चे का गला मरोड़ने से वह बहुत देर तक तड़फता होगा तब भी ईसाइयों को दया नहीं आती। दया क्योंकर आवे! इनके ईश्वर का उपदेश ही हिसा करने का है। और जब सब पापों का ऐसा प्रायश्चित्त है तो ईसा के विश्वास से पाप छूट जाता है यह बड़ा आडम्बर क्यों करते हैं।।५४।।

५५- सो उसी बलिदान की खाल उसी याजक की होगी जिसने उसे चढ़ाया।।

इस ईश्वर को धन्य है कि जिसने बछड़ा, भेड़ी और बकरी का बच्चा, कपोत और पिसान (आटे) तक लेने का नियम किया । अद्भुत बात तो यह है कि कपोत के बच्चे ‘‘गरदन मरोड़वा के’’ लेता था अर्थात् गर्दन तोड़ने का परिश्रम न करना पड़े । इन सब बातों के देखने से विदित होता है कि जंगलियों में कोई चतुर पुरुष था वह पहाड़ पर जा बैठा और अपने को ईश्वर प्रसिद्ध किया । जंगली अज्ञानी थे, उन्होंने उसी को ईश्वर स्वीकार कर लिया । अपनी युक्तियों से वह पहाड़ पर ही खाने के लिए पशु, पक्षी और अन्नादि मंगा लिया करता था और मौज करता था । उसके दूत फरिश्ते काम किया करते थे । सज्जन लोग विचारें कि कहां तो बाइबल में बछड़ा, भेड़ी, बकरी का बच्चा, कपोत और ‘‘अच्छे’’ पिसान का खाने वाला ईश्वर और कहां सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, अजन्मा, निराकार, सर्वशक्तिमान् और न्यायकारी इत्यादि उत्तम गुणयुक्त वेदोक्त ईश्वर ?

और समस्त भोजन की भेंट जो तन्दूर में पकाई जावें और सब जो कड़ाही में अथवा तवे पर सो उसी याजक की होगी।। -तौन लै० प० ७। आ० ८। ९।।

(समीक्षक) हम जानते थे कि यहाँ देवी के भोपे और मन्दिरों के पुजारियों की पोपलीला विचित्र है परन्तु ईसाइयों के ईश्वर और उनके पुजारियों की पोपलीला इससे सहस्रगुणी बढ़कर है। क्योंकि चाम के दाम और भोजन के पदार्थ खाने को आवें फिर ईसाइयों के याजकों ने खूब मौज उड़ाई होगी? और अब भी उड़ाते होंगे। भला कोई मनुष्य एक लड़के को मरवावे और दूसरे लड़के को उसका मांस खिलावे ऐसा कभी हो सकता है? वैसे ही ईश्वर के सब मनुष्य और पशु, पक्षी आदि सब जीव पुत्रवत् हैं। परमेश्वर ऐसा काम कभी नहीं कर सकता। इसी से यह बाइबल ईश्वरकृत और इसमें लिखा ईश्वर और इसके मानने वाले धर्मज्ञ कभी नहीं हो सकते। ऐसे ही सब बातें लैव्य व्यवस्था आदि पुस्तकों में भरी हैं; कहाँ तक गिनावें।।५५।।

गिनती की पुस्तक

५६- सो गदही ने परमेश्वर के दूत को अपने हाथ में तलवार खींचे हुए मार्ग में खड़ा देखा तब गदही मार्ग से अलग खेत में फिर गई, उसे मार्ग में फिरने के लिये बलआम ने गदही को लाठी से मारा। तब परमेश्वर ने गदही का मुंह खोला और उसने बलआम से कहा कि मैंने तेरा क्या किया है कि तूने मुझे अब तीन बार मारा।। - तौन गि० प० २२। आ० २३। २८।।

(समीक्षक) प्रथम तो गदहे तक ईश्वर के दूतों को देखते थे और आज कल बिशप पादरी आदि श्रेष्ठ वा अश्रेष्ठ मनुष्यों को भी खुदा वा उसके दूत नहीं दीखते हैं। क्या आजकल परमेश्वर और उसके दूत हैं वा नहीं? यदि हैं तो क्या बड़ी नींद में सोते हैं? वा रोगी अथवा अन्य भूगोल में चले गये? वा किसी अन्य धन्धे में लग गये? वा अब ईसाइयों से रुष्ट हो गये? अथवा मर गये? विदित नहीं होता कि क्या हुआ? अनुमान तो ऐसा होता है कि जो अब नहीं हैं, नहीं दीखते तो तब भी नहीं थे और न दीखते होंगे। किन्तु ये केवल मनमाने गपोड़े उड़ाये हैं।।५६।।

५७- सो अब लड़कों में से हर एक बेटे को और हर एक स्त्री को जो पुरुष से संयुक्त हुई हो प्राण से मारो।। परन्तु वे बेटियां जो पुरुष से संयुक्त नहीं हुई हैं उन्हें अपने लिये जीती रक्खो।। - तौन गिनती प० ३१। आ० १७। १८।।

(समीक्षक) वाह जी ! मूसा पैगम्बर और तुम्हारा ईश्वर धन्य है कि जो स्त्री, बालक, वृद्ध और पशु की हत्या करने से भी अलग न रहे। और इससे स्पष्ट निश्चित होता है कि मूसा विषयी था। क्योंकि जो विषयी न होता तो अक्षतयोनि अर्थात् पुरुषों से समागम न की हुई कन्याओं को अपने लिये क्यों मंगवाता वा उनको ऐसी निर्दयी वा विषयीपन की आज्ञा क्यों देता? ।।५७।।

समुएल की दूसरी पुस्तक

५८- और उसी रात ऐसा हुआ कि परमेश्वर का वचन यह कह के नातन को पहुंचा।। कि जा और मेरे सेवक दाऊद से कह कि परमेश्वर यों कहता है कि क्या मेरे निवास के लिए तू एक घर बनवायेगा।। क्योंकि जब से इसराएल के सन्तान को मिस्र से निकाल लाया मैंने तो आज के दिन लों घर में वास न किया परन्तु तम्बू में और डेरे में फिरा किया।। - तौन समुएल की दूसरी पु० प० ७। आ० ४। ५। ६।।

(समीक्षक) अब कुछ सन्देह न रहा कि ईसाइयों का ईश्वर मनुष्यवत् देहधारी नहीं है और उलहना देता है कि मैंने बहुत परिश्रम किया, इधर उधर डोलता फिरा, अब दाऊद घर बनादे तो उसमें आराम करूं। क्यों ईसाइयों को ऐसे ईश्वर और ऐसे पुस्तक को मानने में लज्जा नहीं आती? परन्तु क्या करें बिचारे फंस ही गये। अब निकलने के लिए बड़ा पुरुषार्थ करना उचित है।।५८।।

राजाओं की पुस्तक

५९- और बाबेल के राजा नबुखुदनजर के राज्य के उन्नीसवें बरस के पांचवें मास सातवीं तिथि में बाबुल के राजा का एक सेवक नबूसर अद्दान जो निज सेना का प्रधान अध्यक्ष था, यरूसलम में आया।। और उसने परमेश्वर का मन्दिर और राजा का भवन और यरूसलम के सारे घर और हर एक बड़े घर को जला दिया।। और कसदियों की सारी सेना ने जो उस निज सेना के अध्यक्ष के साथ थी यरूसलम की भीतों को चारों ओर से ढा दिया।। - तौन रा० पु० २। प० २५। आ० ८। ९। १०।।

(समीक्षक) क्या किया जाय? ईसाइयों के ईश्वर ने तो अपने आराम के लिये दाऊद आदि से घर बनवाया था। उसमें आराम करता होगा, परन्तु नबूसर अद्दान ने ईश्वर के घर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और ईश्वर वा उसके दूतों की सेना कुछ भी न कर सकी। प्रथम तो इनका ईश्वर बड़ी-बड़ी लड़ाइयां मारता था और विजयी होता था परन्तु अब अपना घर जला तुड़वा बैठा। न जाने चुपचाप क्यों बैठा रहा? और न जाने उसके दूत किधर भाग गये? ऐसे समय पर कोई भी काम न आया और ईश्वर का पराक्रम भी न जाने कहाँ उड़ गया? यदि यह बात सच्ची हो तो जो जो विजय की बातें प्रथम लिखीं सो-सो सब व्यर्थ हो गईं। क्या मिस्र के लड़के लड़कियों के मारने में ही शूरवीर बना था? अब शूरवीरों के सामने चुपचाप हो बैठा? यह तो ईसाइयों के ईश्वर ने अपनी निन्दा और अप्रतिष्ठा करा ली। ऐसी ही हजारों इस पुस्तक में निकम्मी कहानियां भरी हैं।।५९।।

जबूर का दूसरा भाग

काल के समाचार की पहली पुस्तक

६०- सो परमेश्वर ने इसराएल पर मरी भेजी और इसराएल में से सत्तर सहस्र पुरुष गिर गये।। - जबूर २। काल० पु० प० २१। आ० १४।।

(समीक्षक) अब देखिये इसराएल के ईसाइयों के ईश्वर की लीला! जिस इसराएल कुल को बहुत से वर दिये थे और रात दिन जिनके पालन में डोलता था अब झट क्रोधित होकर मरी डाल के सत्तर सहस्र मनुष्यों को मार डाला। जो यह किसी कवि ने लिखा है सत्य है कि-

क्षणे रुष्टः क्षणे तुष्टो रुष्टस्तुष्टः क्षणे क्षणे ।
अव्यवस्थितचित्तस्य प्रसादोऽपि भयंकरः ।।

जैसे कोई मनुष्य क्षण में प्रसन्न, क्षण में अप्रसन्न होता है, अर्थात् क्षण-क्षण में प्रसन्न अप्रसन्न होवे उसकी प्रसन्नता भी भयदायक होती है वैसी लीला ईसाइयों के ईश्वर की है।।६०।।

ऐयूब की पुस्तक

६१- और एक दिन ऐसा हुआ कि परमेश्वर के आगे ईश्वर के पुत्र आ खड़े हुए और शैतान भी उनके मध्य में परमेश्वर के आगे आ खड़ा हुआ।। और परमेश्वर ने शैतान से कहा कि तू कहां से आता है? तब शैतान ने उत्तर दे के परमेश्वर से कहा कि पृथिवी पर घूमते और इधर उधर से फिरते चला आता हूं।। तब परमेश्वर ने शैतान से पूछा कि तूने मेरे दास ऐयूब को जांचा है कि उसके समान पृथिवी में कोई नहीं है वह सिद्ध और खरा जन ईश्वर से डरता और पाप से अलग रहता है और अब लों अपनी सच्चाई को धर रक्खा है और तूने मुझे उसे अकारण नाश करने को उभारा है।। तब शैतान ने उत्तर दे के परमेश्वर से कहा कि चाम के लिये चाम हां जो मनुष्य का है सो अपने प्राण के लिये देगा।। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ा और उसके हाड़ मांस को छू तब वह निःसन्देह तुझे तेरे सामने त्यागेगा।। तब परमेश्वर ने शैतान से कहा कि देख वह तेरे हाथ में है, केवल उसके प्राण को बचा।। तब शैतान परमेश्वर के आगे से चला गया और ऐयूब को सिर से तलवे लों बुरे फोड़ों से मारा।। - जबूर ऐयू० प० २। आ० १। २। ३। ४। ५। ६। ७।।

(समीक्षक) अब देखिये ईसाइयों के ईश्वर का सामर्थ्य ! कि शैतान उसके सामने उसके भक्तों को दुःख देता है। न शैतान को दण्ड, न अपने भक्तों को बचा सकता है और न दूतों में से कोई उसका सामना कर सकता है। एक शैतान ने सब को भयभीत कर रक्खा है। और ईसाइयों का ईश्वर भी सर्वज्ञ नहीं है। जो सर्वज्ञ होता तो ऐयूब की परीक्षा शैतान से क्यों कराता? ।।६१।।

उपदेश की पुस्तक

६२- हां! अन्तःकरण ने बुद्धि और ज्ञान बहुत देखा है।। और मैंने बुद्धि और बौड़ाहपन और मूढ़ता जान्ने को मन लगाया। मैंने जान लिया कि यह भी मन का झंझट है।। क्योंकि अधिक बुद्धि में बड़ा शोक है और जो ज्ञान में बढ़ता है सो दुःख में बढ़ता है।। -जन उ० प० १। आ० १६। १७। १८।।

(समीक्षक) अब देखिये ! जो बुद्धि और ज्ञान पर्यायवाची हैं उनको दो मानते हैं। और बुद्धि वृद्धि में शोक और दुःख मानना विना अविद्वानों के ऐसा लेख कौन कर सकता है? इसलिये यह बाइबल ईश्वर की बनाई तो क्या किसी विद्वान् की भी बनाई नहीं है।।६२।।

यह थोड़ा सा तौरेत जबूर के विषय में लिखा। इसके आगे कुछ मत्तीरचित आदि इञ्जील के विषय में लिखा जाता है कि जिसको ईसाई लोग बहुत प्रमाणभूत मानते हैं। जिसका नाम इञ्जील रक्खा है उसकी परीक्षा थोड़ी सी लिखते हैं कि यह कैसी है।

मत्ती रचित इञ्जील

६३- यीशु ख्रीष्ट का जन्म इस रीति से हुआ- उसकी माता मरियम की यूसफ से मंगनी हुई थी पर उनके इकट्ठे होने के पहिले ही वह देख पड़ी कि पवित्र आत्मा से गर्भवती है।। देखो परमेश्वर के एक दूत ने स्वप्न में उसे दर्शन दे कहा, हे दाऊद के सन्तान यूसफ ! तू अपनी स्त्री मरियम को यहां लाने से मत डर क्योंकि उसको जो गर्भ रहा है सो पवित्र आत्मा से है।। - इं० प० १। आ० १८। २०।।

(समीक्षक) इन बातों को कोई विद्वान् नहीं मान सकता कि जो प्रत्यक्षादि प्रमाण और सृष्टिक्रम से विरुद्ध हैं। इन बातों का मानना मूर्ख मनुष्य जंगलियों का काम है; सभ्य विद्वानों का नहीं। भला ! जो परमेश्वर का नियम है उसको कोई तोड़ सकता है? जो परमेश्वर भी नियम को उलटा पलटा करे तो उसकी आज्ञा को कोई न माने और वह भी सर्वज्ञ और निर्भ्रम न रहै। ऐसे तो जिस-जिस कुमारिका के गर्भ रह जाय तब सब कोई ऐसे कह सकते हैं कि इसमें गर्भ का रहना ईश्वर की ओर से है और झूठ मूठ कह दे कि परमेश्वर के दूत ने मुझ को स्वप्न में कह दिया है कि यह गर्भ परमात्मा की ओर से है। जैसा यह असम्भव प्रपञ्च रचा है वैसा ही सूर्य्य से कुन्ती का गर्भवती होना भी पुराणों में असम्भव लिखा है। ऐसी-ऐसी बातों को आंख के अन्धे और गांठ के पूरे लोग मान कर भ्रमजाल में गिरते हैं। यह ऐसी बात हुई होगी कि किसी पुरुष के साथ समागम होने से गर्भवती मरियम हुई होगी। उसने वा किसी दूसरे ने ऐसी असम्भव बात उड़ा दी होगी कि इस में गर्भ ईश्वर की ओर से है।।६३।।

६४- तब आत्मा यीशु को जंगल में ले गया कि शैतान से उसकी परीक्षा की जाय।। वह चालीस दिन और चालीस रात उपवास करके पीछे भूखा हुआ।। तब परीक्षा करने हारे ने कहा कि जो तू ईश्वर का पुत्र है तो कह दे कि ये पत्थर रोटियां बन जावें।। - इं० मत्ती प० ४। आ० १। २। ३।।

(समीक्षक) इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि ईसाइयों का ईश्वर सर्वज्ञ नहीं। क्योंकि जो सर्वज्ञ होता तो उसकी परीक्षा शैतान से क्यों कराता? स्वयं जान लेता। भला ! किसी ईसाई को आज कल चालीस रात चालीस दिन भूखा रक्खें तो कभी बच सकेगा? और इससे यह भी सिद्ध हुआ कि न वह ईश्वर का बेटा और न कुछ उसमें करामात अर्थात् सिद्धि थी। नहीं तो शैतान के सामने पत्थर की रोटियां क्यों न बना देता? और आप भूखा क्यों रहता? और सिद्धान्त यह है कि जो परमेश्वर ने पत्थर बनाये हैं उनको रोटी कोई भी नहीं बना सकता और ईश्वर भी पूर्वकृत नियम को उलटा नहीं कर सकता क्योंकि वह सर्वज्ञ और उसके सब काम बिना भूल चूक के हैं।।६४।।

६५- उसने उनसे कहा मेरे पीछे आओ मैं तुमको मनुष्यों के मछुवे बनाऊंगा।। वे तुरन्त जालों को छोड़ के उसके पीछे हो लिये। -इं० मत्ती प० ४। आ० १९। २०।।

(समीक्षक) विदित होता है कि इसी पाप अर्थात् जो तौरेत में दश आज्ञाओं में लिखा है कि ‘सन्तान लोग अपने माता पिता की सेवा और मान्य करें जिससे उनकी उमर बढ़े’ सो ईसा ने न अपने माता पिता की सेवा की और दूसरों को भी माता पिता की सेवा से छुड़ाये, इसी अपराध से चिरंजीवी न रहा। और यह भी विदित हुआ कि ईसा ने मनुष्यों के फंसाने के लिये एक मत चलाया है कि जाल में मच्छी के समान मनुष्यों को स्वमत जाल में फंसाकर अपना प्रयोजन साधें। जब ईसा ही ऐसा था तो आज कल के पादरी लोग अपने जाल में मनुष्यों को फंसावें तो क्या आश्चर्य है? क्योंकि जैसे बड़ी-बड़ी और बहुत मच्छियों को जाल में फंसाने वाले की प्रतिष्ठा और जीविका अच्छी होती है, ऐसे ही जो बहुतों को अपने मत में फंसा ले उसकी अधिक प्रतिष्ठा और जीविका होती है। इसी से ये लोग जिन्होंने वेद और शास्त्रें को न पढ़ा न सुना उन बिचारे भोले मनुष्यों को अपने जाल में फंसा के उस के मां बाप कुटुम्ब आदि से पृथक् कर देते हैं। इससे सब विद्वान् आर्यों को उचित है कि स्वयम् इनके भ्रमजाल से बच कर अन्य अपने भोले भाइयों को बचाने में तत्पर रहैं।।६५।।

६६- तब यीशु सारे गालील देश में उनकी सभाओं में उपदेश करता हुआ और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता हुआ और लोगों में हर एक रोग और हर एक व्याधि को चंगा करता हुआ फिरा किया।। सब रोगियों को जो नाना प्रकार के रोगों और पीड़ाओं से दुःखी थे और भूतग्रस्तों और मृगी वाले अर्द्धांगियों को उसके पास लाये और उसने उन्हें चंगा किया।। -इं० मत्ती प० ४। आ० २३। २४।।

(समीक्षक) जैसे आजकल पोपलीला निकालने मन्त्र पुरश्चरण आशीर्वाद ताबीज और भस्म की चुटुकी देने से भूतों को निकालना रोगों को छुड़ाना सच्चा हो तो वह इञ्जील की बात भी सच्ची होवे। इस कारण भोले मनुष्यों के भ्रम में फंसाने के लिये ये बातें हैं। जो ईसाई लोग ईसा की बातों को मानते हैं तो यहां के देवी भोपों की बातें क्यों नहीं मानते? क्योंकि वे बातें इन्हीं के सदृश हैं।।६६।।

६७- धन्य वे जो मन में दीन हैं क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।। क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब लों आकाश और पृथिवी टल न जायें तब लों व्यवस्था से एक मात्र अथवा एक बिन्दु बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।। इसलिये इन अति छोटी आज्ञाओं में से एक को लोप करे और लोगों को वैसे ही सिखावे वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहावेगा।। -इं० मत्ती प० ५। आ० ३। १८। १९।।

(समीक्षक) जो स्वर्ग एक है तो राजा भी एक होना चाहिये। इसलिये जितने दीन हैं वे सब स्वर्ग को जावेंगे तो स्वर्ग में राज्य का अधिकार किसको होगा। अर्थात् परस्पर लड़ाई-भिड़ाई करेंगे और राज्यव्यवस्था खण्ड-बण्ड हो जायेगी। और दीन के कहने से जो कंगले लोगे, तब तो ठीक नहीं। जो निरभिमानी लोगे तो भी ठीक नहीं; क्योंकि दीन और निर् अभिमान का एकार्थ नहीं। किन्तु जो मन में दीन होता है उसको सन्तोष कभी नहीं होता इसलिये यह बात ठीक नहीं। जब आकाश पृथिवी टल जायें तब व्यवस्था भी टल जायेगी ऐसी अनित्य व्यवस्था मनुष्यों की होती है; सर्वज्ञ ईश्वर की नहीं। और यह एक प्रलोभन और भयमात्र दिया है कि जो इन आज्ञाओं को न मानेगा वह स्वर्ग में सब से छोटा गिना जायेगा।।६७।।

६८- हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे।। अपने लिए पृथिवी पर धन का संचय मत करो।। -इं० म० प० ६। आ० ११। १९।।

(समीक्षक) इससे विदित होता है कि जिस समय ईसा का जन्म हुआ है उस समय लोग जंगली और दरिद्र थे तथा ईसा भी वैसा ही दरिद्र था। इसी से तो दिन भर की रोटी की प्राप्ति के लिये ईश्वर की प्रार्थना करता और सिखलाता है। जब ऐसा है तो ईसाई लोग धन संचय क्यों करते हैं? उनको चाहिये कि ईसा के वचन से विरुद्ध न चल कर सब दान पुण्य करके दीन हो जायें।।६८।।

६९- हर एक जो मुझ से हे प्रभु हे प्रभु कहता है स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा।। - इं० म० प० ७। आ० २१।।

(समीक्षक) अब विचारिये! बडे़-बड़े पादरी बिशप साहेब और कृश्चीन लोग जो यह ईसा का वचन सत्य है ऐसा समझें तो ईसा को प्रभु अर्थात् ईश्वर कभी न कहें। यदि इस बात को न मानेंगे तो पाप से कभी नहीं बच सकेंगे।।६९।।

७०- उस दिन में बहुतेरे मुझ से कहेंगे।। तब मैं उनसे खोल के कहूँगा मैंने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म्म करनेहारो! मुझ से दूर होओ।। -इं० म० प० ७। आ० २२। २३।।

(समीक्षक) देखिये! ईसा जंगली मनुष्यों को विश्वास कराने के लिए स्वर्ग में न्यायाधीश बनना चाहता था। यह केवल भोले मनुष्यों को प्रलोभन देने की बात है।।७०।।

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Who can break the law of God? If God also turns the rules upside down, then no one should obey his command and that too should not be omniscient and ruthless. In such a way that every woman who has a womb can say, then everyone can say that in this the womb is from God and falsely tell that the messenger of God has told me in a dream that this womb is towards God Is from It is written in the Puranas that it is impossible for Kunti to become pregnant with the sun as it is impossible.

 

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