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त्रयोदश समुल्लास भाग -3

३१- और यअकूब बिहान को तड़के उठा और उस पत्थर को जिसे उसने अपना तकिया किया था खम्भा खड़ा किया और उस पर तेल डाला।। और उस स्थान का नाम बैतएल रक्खा।। और यह पत्थर जो मैंने खम्भा खड़ा किया ईश्वर का घर होगा।। - तौन उत्प० पर्व० २८। आ० १८। १९। २२।।

(समीक्षक) अब देखिये जंगलियों के काम। इन्होंने पत्थर पूजे और पुजवाये और इसको मुसलमान लोग ‘बैतएलमुकद्दस’ कहते हैं। क्या यही पत्थर ईश्वर का घर और उसी पत्थरमात्र में ईश्वर रहता था? वाह-वाह जी! क्या कहना है ईसाई लोगो! महाबुत्परस्त तो तुम्हीं हो।।३१।।

३२- और ईश्वर ने राहेल को स्मरण किया और ईश्वर ने उसकी सुनी और उसकी कोख को खोला।। और वह गर्भिणी हुई और बेटा जनी और बोली कि ईश्वर ने मेरी निन्दा दूर किई।। - तौन उत्प० पर्व० ३०। आ० २२। २३।।

(समीक्षक) वाह ईसाइयों के ईश्वर! क्या बड़ा डाक्तर है! स्त्रियों की कोख खोलने को कौन से शस्त्र वा औषध थे जिनसे खोली, ये सब बातें अन्धाधुन्ध की हैं।।३२।।

३३- परन्तु ईश्वर अरामी लावन कने स्वप्न में रात को आया और उसे कहा कि चौकस रह तू यअकूब को भला बुरा मत कहना।। क्योंकि तू अपने पिता के घर का निपट अभिलाषी है तूने किसलिये मेरे देवों को चुराया है।। - तौन उत्प० पर्व० ३१। आ० २४। ३०।।

(समीक्षक) यह हम नमूना लिखते हैं, हजारों मनुष्यों को स्वप्न में आया, बातें किईं, जागृत साक्षात् मिला, खाया, पिया, आया, गया आदि बाइबल में लिखा है परन्तु अब न जाने वह है वा नहीं? क्योंकि अब किसी को स्वप्न वा जागृत में भी ईश्वर नहीं मिलता और यह भी विदित हुआ कि ये जंगली लोग पाषाणादि मूर्तियों को देव मानकर पूजते थे परन्तु ईसाइयों का ईश्वर भी पत्थर ही को देव मानता है, नहीं तो देवों का चुराना कैसे घटे? ।।३३।।

३४- और यअकूब अपने मार्ग चला गया और ईश्वर के दूत उसे आ मिले।। और यअकूब ने उन्हें देख के कहा कि यह ईश्वर की सेना है।। - तौनउत्पन पर्व० ३२। आ० १। २।।

(समीक्षक) अब ईसाइयों का ईश्वर मनुष्य होने में कुछ भी सन्दिग्ध नहीं रहा, क्योंकि सेना भी रखता है। जब सेना हुई तब शस्त्र भी होंगे और जहाँ तहाँ चढ़ाई करके लड़ाई भी करता होगा, नहीं तो सेना रखने का क्या प्रयोजन है? ।।३४।।

३५- और यअकूब अकेला रह गया और वहां पौ फटे लों एक जन उससे मल्लयुद्ध करता रहा। और जब उसने देखा कि वह उस पर प्रबल न हुआ तो उसकी जांघ को भीतर से छूआ। तब यअकूब के जांघ की नस उसके संग मल्लयुद्ध करने में चढ़ गई।। तब वह बोला कि मुझे जाने दे क्योंकि पौ फटती है और वह बोला मैं तुझे जाने न देऊंगा जब लों तू मुझे आशीष न देवे।। तब उसने उससे कहा कि तेरा नाम क्या ? और वह बोला कि यअकूब।। तब उसने कहा कि तेरा नाम आगे को यअकूब न होगा परन्तु इसराएल, क्योंकि तूने ईश्वर के आगे और मनुष्यों के आगे राजा की नाईं मल्लयुद्ध किया और जीता।। तब यअकूब ने यह कहिके उससे पूछा कि अपना नाम बताइये और वह बोला कि तू मेरा नाम क्यों पूछता है और उसने उसे वहां आशीष दिया।। और यअकूब ने उस स्थान का नाम फनूएल रक्खा क्योंकि मैंने ईश्वर को प्रत्यक्ष देखा और मेरा प्राण बचा है।। और जब वह फनूएल से पार चला तो सूर्य की ज्योति उस पर पड़ी और वह अपनी जाँघ से लँगड़ाता था।। इसलिये इसरायल के वंश उस जांघ की नस को जो चढ़ गई थी आज लों नहीं खाते क्योंकि उसने यअकूब के जांघ की नस को जो चढ़ गई थी; छूआ था।। - तौन उत्प० पर्व० ३२। आ० २४। २५। २६। २७। २८। २९। ३०। ३१। ३२।।

(समीक्षक) जब ईसाइयों का ईश्वर अखाड़मल्ल है तभी तो सरः और राखल पर पुत्र होने की कृपा की। भला यह कभी ईश्वर हो सकता है? अब देखो लीला! कि एक जना नाम पूछे तो दूसरा अपना नाम ही न बतावे? और ईश्वर ने उसकी नाड़ी को चढ़ा तो दी और जीत गया परन्तु जो डाक्टर होता तो जांघ की नाड़ी को अच्छी भी करता। और ऐसे ईश्वर की भक्ति से जैसा कि यअकूब लंगड़ाता रहा तो अन्य भक्त भी लंगड़ाते होंगे। जब ईश्वर को प्रत्यक्ष देखा और मल्लयुद्ध किया यह बात विना शरीर वाले के कैसे हो सकती है? यह केवल लड़कपन की लीला है।।३५।।

३६- ईश्वर का मुंह देखा।। - तौनउत्पन पर्व० ३३। आ० १०।।

(समीक्षक) जब ईश्वर के मुंह है और भी सब अवयव होंगे और वह जन्म मरण वाला भी होगा।।३६।।

३७- और यहूदाह का पहिलौठा एर परमेश्वर की दृष्टि में दुष्ट था सो परमेश्वर ने उसे मार डाला। तब यहूदाह ने ओनान को कहा कि अपने भाई की पत्नी पास जा और उससे ब्याह कर अपने भाई के लिए वंश चला।। और ओनान ने जाना कि यह वंश मेरा न होगा और यों हुआ कि जब वह अपने भाई की पत्नी पास गया तो वीर्य्य को भूमि पर गिरा दिया।। और उसका वह कार्य्य परमेश्वर की दृष्टि में बुरा था इसलिये उसने उसे भी मार डाला।। - तौनउत्पन पर्व० ३८। आ० ७। ८। ९। १०।।

(समीक्षक) अब देख लीजिये! ये मनुष्यों के काम हैं कि ईश्वर के? जब उसके साथ नियोग हुआ तो उसको क्यों मार डाला? उसकी बुद्धि शुद्ध क्यों न कर दी? और वेदोक्त नियोग भी प्रथम सर्वत्र चलता था। यह निश्चय हुआ कि नियोग की बातें सब देशों में चलती थीं।।३७।।

तौरेत यात्र की पुस्तक

३८- जब मूसा सयाना हुआ और अपने भाइयों में से एक इबरानी को देखा कि मिस्री उसे मार रहा है।। तब उसने इधर-उधर दृष्टि किई देखा कि कोई नहीं तब उसने उस मिस्री को मार डाला और बालू में उसे छिपा दिया।। जब वह दूसरे दिन बाहर गया तो देखा, दो इबरानी आपस में झगड़ रहे हैं तब उसने उस अंधेरी को कहा कि तू अपने परोसी को क्यों मारता है।। तब उसने कहा कि किसने तुझे हम पर अध्यक्ष अथवा न्यायी ठहराया, क्या तू चाहता है कि जिस रीति से मिस्री को मार डाला मुझे भी मार डाले।। तब मूसा डरा औेर भाग निकला।। - तौन या० प० २। आ० ११। १२। १३। १४। १५।।

(समीक्षक) अब देखिये! जो बाइबल का मुख्य सिद्धकर्त्ता मत का आचार्य मूसा कि जिसका चरित्र क्रोधादि दुर्गुणों से युक्त, मनुष्य की हत्या करने वाला और चोरवत् राजदण्ड से बचनेहारा अर्थात् जब बात को छिपाता था तो झूठ बोलने वाला भी अवश्य होगा, ऐसे को भी जो ईश्वर मिला वह पैगम्बर बना उसने यहूदी आदि का मत चलाया वह भी मूसा ही के सदृश हुआ। इसलिये ईसाइयों के जो मूल पुरुषा हुए हैं वे सब मूसा से आदि लेकर के जंगली अवस्था में थे, विद्यावस्था में नहीं, इत्यादि।।३८।।

३९- जब परमेश्वर ने देखा कि वह देखने को एक अलंग फिरा तो ईश्वर ने झाड़ी के मध्य में से उसे पुकार के कहा कि हे मूसा हे मूसा! तब वह बोला मैं यहां हूं।। तब उसने कहा कि इधर पास मत आ, अपने पाओं से जूता उतार, क्योंकि यह स्थान जिस पर तू खड़ा है; पवित्र भूमि है। - तौन या० पु० प० ३। आ० ४। ५।।

(समीक्षक) देखिये! ऐसे मनुष्य जो कि मनुष्य को मार के बालू में गाड़ने वाले से इनके ईश्वर की मित्रता और उसको पैगम्बर मानते हैं। और देखो जब तुम्हारे ईश्वर ने मूसा से कहा कि पवित्र स्थान में जूती न ले जानी चाहिए। तुम ईसाई इस आज्ञा के विरुद्ध क्यों चलते हो? ।।

(प्रश्न) हम जूती के स्थान में टोपी उतार लेते हैं।

(उत्तर) यह दूसरा अपराध तुमने किया क्योंकि टोपी उतारना न ईश्वर ने कहा न तुम्हारे पुस्तक में लिखा है। और उतारने योग्य को नहीं उतारते, जो नहीं उतारना चाहिये उसको उतारते हो, दोनों प्रकार तुम्हारे पुस्तक से विरुद्ध हैं।

(प्रश्न) हमारे यूरोप देश में शीत अधिक है इसलिये हम लोग जूती नहीं उतारते।

(उत्तर) क्या शिर में शीत नहीं लगता? जो यही है तो यूरोप देश में जाओ तब ऐसा ही करना। परन्तु जब हमारे घर में वा बिछौने में आया करो तब तो जूती उतार दिया करो और जो न उतारोगे तो तुम अपने बाइबल पुस्तक के विरुद्ध चलते हो; ऐसा तुम को न करना चाहिये।।३९।।

४०- तब ईश्वर ने उसे कहा कि तेरे हाथ में यह क्या है और वह बोला कि छड़ी।। तब उसने कहा कि उसे भूमि पर डाल दे और उसने भूमि पर डाल दिया और वह सर्प्प बन गई और मूसा उसके आगे से भागा।। तब परमेश्वर ने मूसा से कहा कि अपना हाथ बढ़ा और उसकी पूंछ पकड़ ले, तब उसने अपना हाथ बढ़ाया और उसे पकड़ लिया और वह उसके हाथ में छड़ी हो गई।। तब परमेश्वर ने उसे कहा कि फिर तू अपना हाथ अपनी गोद में कर और उसने अपना हाथ अपनी गोद में किया जब उसने उसे निकाला तो देखा कि उसका हाथ हिम के समान कोढ़ी था।। और उसने कहा कि अपना हाथ फिर अपनी गोद में कर। उसने फिर अपने हाथ को अपनी गोद में किया और अपनी गोद से उसे निकाला तो देखा कि जैसी उसकी सारी देह थी वह वैसा फिर हो गया।। तू नील नदी का जल लेके सूखी पर ढालियो और वह जल जो तू नदी से निकालेगा सो सूखी पर लोहू हो जायेगा।। - तौन या० प० ४। आ० २। ३। ४। ६। ७। ९।।

(समीक्षक) अब देखिये! कैसे बाजीगर का खेल, खिलाड़ी ईश्वर, उसका सेवक मूसा और इन बातों को मानने हारे कैसे हैं? क्या आजकल बाजीगर लोग इससे कम करामात करते हैं? यह ईश्वर क्या, यह तो बड़ा खिलाड़ी है। इन बातों को विद्वान् क्यों कर मानेंगे? और हर एक बार मैं परमेश्वर हूं और अबिरहाम, इजहाक और याकूब का ईश्वर हूं इत्यादि हर एक से अपने मुख से प्रशंसा करता फिरता है, यह बात उत्तम जन की नहीं हो सकती किन्तु दम्भी मनुष्य की हो सकती है।।४०।।

४१- और फसह मेम्ना मारो।। और एक मूठी जूफा लेओ और उसे उस लोहू में जो बासन में है बोर के, ऊपर की चौखट के और द्वार की दोनों ओर उससे छापो और तुम में से कोई बिहान लों अपने घर के द्वार से बाहर न जावे।। क्योंकि परमेश्वर मिस्र के मारने के लिये आर-पार जायेगा और जब वह ऊपर की चौखट पर और द्वार की दोनों ओर लोहू को देखे तब परमेश्वर द्वार से बीत जायेगा और नाशक तुम्हारे घरों में जाने न देगा कि मारे।। - तौन या० प० १२। आ० २१। २२। २३।।

(समीक्षक) भला यह जो टोने टामन करने वाले के समान है वह ईश्वर सर्वज्ञ कभी हो सकता है? जब लोहू का छापा देखे तभी इसरायल कुल का घर जाने, अन्यथा नहीं। यह काम क्षुद्र बुद्धि वाले मनुष्य के सदृश है। इससे यह विदित होता है कि ये बातें किसी जंगली मनुष्य की लिखी हैं।।४१।।

४२- और यों हुआ कि परमेश्वर ने आधी रात को मिस्र के देश में सारे पहिलौठे जो फिरऊन के पहिलौठे से लेके जो अपने सिहासन पर बैठता था उस बन्धुआ के पहिलौठे लों जो बन्दीगृह में था पशुन के पहिलौठों समेत नाश किये। और रात को फिरऊन उठा, वह और उसके सब सेवक और सारे मिस्री उठे और मिस्र में बड़ा विलाप था क्योंकि कोई घर न रहा जिस में एक न मरा।। - तौन या० प० १२। आ० २९। ३०।।

(समीक्षक) वाह! अच्छा आधी रात को डाकू के समान निर्दयी होकर ईसाइयों के ईश्वर ने लड़के बाले, वृद्ध और पशु तक भी विना अपराध मार दिये और कुछ भी दया न आई और मिस्र में बड़ा विलाप होता रहा तो भी ईसाइयों के ईश्वर के चित्त से निष्ठुरता नष्ट न हुई! ऐसा काम ईश्वर का तो क्या किन्तु किसी साधारण मनुष्य के भी करने का नहीं है। यह आश्चर्य नहीं, क्योंकि लिखा है ‘मांसाहारिणः कुतो दया’ जब ईसाइयों का ईश्वर मांसाहारी है तो उसको दया करने से क्या काम है? ।।४२।।

४३- परमेश्वर तुम्हारे लिये युद्ध करेगा।। इसराएल के सन्तान से कह कि वे आगे बढें।। परन्तु तू अपनी छड़ी उठा और समुद्र पर अपना हाथ बढ़ा और उसे दो भाग कर और इसराएल के सन्तान समुद्र के बीचों बीच से सूखी भूमि में होकर चले जायेंगे।। - तौन या० प० १४। आ० १४। १५। १६।।

(समीक्षक) क्यों जी! आगे तो ईश्वर भेड़ों के पीछे गड़रिये के समान इस्रायेल कुल के पीछे-पीछे डोला करता था। अब न जाने कहां अन्तर्धान हो गया? नहीं तो समुद्र के बीच में से चारों ओर की रेलगाड़ियों की सड़क बनवा लेते जिससे सब संसार का उपकार होता और नाव आदि बनाने का श्रम छूट जाता। परन्तु क्या किया जाय, ईसाइयों का ईश्वर न जाने कहाँ छिप रहा है? इत्यादि बहुत सी मूसा के साथ असम्भव लीला बाइबल के ईश्वर ने की हैं परन्तु यह विदित हुआ कि जैसा ईसाइयों का ईश्वर है वैसे ही उसके सेवक और ऐसी ही उसकी बनाई पुस्तक है। ऐसी पुस्तक और ऐसा ईश्वर हम लोगों से दूर रहै तभी अच्छा है।।४३।।

४४- क्योंकि मैं परमेश्वर तेरा ईश्वर ज्वलित सर्वशक्तिमान् हूं। पितरों के अपराध का दण्ड उनके पुत्रें को जो मेरा वैर रखते हैं उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी लों देवैया हूं।। - तौन या० प० २०। आ० ५।।

(समीक्षक) भला यह किस घर का न्याय है कि जो पिता के अपराध से चार पीढ़ी तक दण्ड देना अच्छा समझना। क्या अच्छे पिता के दुष्ट और दुष्ट के अच्छे सन्तान नहीं होते? जो ऐसा है तो चौथी पीढ़ी तक दण्ड कैसे दे सकेगा? और जो पांचवीं पीढ़ी से आगे दुष्ट होगा उसको दण्ड न दे सकेगा। विना अपराध किसी को दण्ड देना अन्यायकारी की बात है।।४४।।

४५- विश्राम के दिन को उसे पवित्र रखने के लिये स्मरण कर।। छः दिन लों तू परिश्रम कर।। परन्तु सातवां दिन परमेश्वर तेरे ईश्वर का विश्राम है।। परमेश्वर ने विश्राम दिन को आशीष दिई।। - तौन या० प० २०। आ० ८। ९। १०। ११।।

(समीक्षक) क्या रविवार एक ही पवित्र और छः दिन अपवित्र हैं? और क्या परमेश्वर ने छः दिन तक कड़ा परिश्रम किया था कि जिससे थक के सातवें दिन सो गया? और जो रविवार को आशीर्वाद दिया तो सोमवार आदि छः दिन को क्या दिया? अर्थात् शाप दिया होगा। ऐसा काम विद्वान् का भी नहीं तो ईश्वर का क्यों कर हो सकता है? भला रविवार में क्या गुण और सोमवार आदि ने क्या दोष किया था कि जिससे एक को पवित्र तथा वर दिया और अन्यों को ऐसे ही अपवित्र कर दिये।।४५।।

४६- अपने परोसी पर झूठी साक्षी मत दे।। अपने परोसी की स्त्री और उसके दास उसकी दासी और उसके बैल और उसके गदहे और किसी वस्तु का जो तेरे परोसी की है; लालच मत कर।। - तौन या० प० २०। आ० १६। १७।।

(समीक्षक) वाह! तभी तो ईसाई लोग परदेशियों के माल पर ऐसे झुकते हैं कि जानो प्यासा जल पर, भूखा अन्न पर। जैसी यह केवल मतलब सिन्धु और पक्षपात की बात है ऐसा ही ईसाइयों का ईश्वर अवश्य होगा। यदि कोई कहे कि हम सब मनुष्य मात्र को परोसी मानते हैं तो सिवाय मनुष्य के अन्य कौन स्त्री और दासी आदि वाले हैं कि जिनको अपरोसी गिनें? इसलिये ये बातें स्वार्थी मनुष्यों की हैं; ईश्वर की नहीं।।४६।।

४७- जो कोई किसी मनुष्य को मारे और वह मर जाये वह निश्चय घात किया जाय।। और वह मनुष्य घात में न लगा हो परन्तु ईश्वर ने उसके हाथ में सौंप दिया हो तब मैं तुझे भागने का स्थान बता दूँगा।। - तौन या० प० २१। आ० १२। १३।।

(समीक्षक) जो यह ईश्वर का न्याय सच्चा है तो मूसा एक आदमी को मार गाड़ कर भाग गया था उसको यह दण्ड क्यों न हुआ? जो कहो ईश्वर ने मूसा को मारने के निमित्त सौंपा था तो ईश्वर पक्षपाती हुआ क्योंकि उस मूसा का राजा से न्याय क्यों न होने दिया? ।।४७।।

४८- और कुशल का बलिदान बैलों से परमेश्वर के लिए चढ़ाया।। और मूसा ने आधा लोहू लेके पात्रें में रक्खा और आधा लोहू वेदी पर छिड़का।। और मूसा ने उस लोहू को लेके लोगों पर छिड़का और कहा कि यह लोहू उस नियम का है जिसे परमेश्वर ने इन बातों के कारण तुम्हारे साथ किया है।। और परमेश्वर ने मूसा से कहा कि पहाड़ पर मुझ पास आ और वहां रह और मैं तुझे पत्थर की पटियां और व्यवस्था और आज्ञा मैने लिखी है; दूंगा।। - तौन या० प० २२। आ० ५। ६। ८। १२।।

(समीक्षक) अब देखिये! ये सब जंगली लोगों की बातें हैं वा नहीं? और परमेश्वर बैलों का बलिदान लेता और वेदी पर लोहू छिड़कना यह कैसी जंगलीपन और असभ्यता की बात है? जब ईसाइयों का खुदा भी बैलों का बलिदान लेवे तो उसके भक्त बैल गाय के बलिदान की प्रसादी से पेट क्यों न भरें? और जगत् की हानि क्यों न करें? ऐसी-ऐसी बुरी बातें बाइबल में भरी हैं। इसी के कुसंस्कारों से वेदों में भी ऐसा झूठा दोष लगाना चाहते हैं परन्तु वेदों में ऐसी बातों का नाम भी नहीं। और यह भी निश्चय हुआ कि ईसाइयों का ईश्वर एक पहाड़ी मनुष्य था, पहाड़ पर रहता था। जब वह खुदा स्याही, लेखनी, कागज, नहीं बना जानता और न उसको प्राप्त था इसीलिये पत्थर की पटियों पर लिख-लिख देता था और इन्हीं जंगलियों के सामने ईश्वर भी बन बैठा था।।४८।।

४९- और बोला कि तू मेरा रूप नहीं देख सकता क्योंकि मुझे देख के कोई मनुष्य न जीयेगा।। और परमेश्वर ने कहा कि देख एक स्थान मेरे पास है और तू उस टीले पर खड़ा रह।। और यों होगा कि जब मेरा विभव चल निकलेगा तो मैं तुझे पहाड़ के दरार में रक्खूँगा और जब लों जा निकलूं तुझे अपने हाथ से ढांपूंगा।। और अपना हाथ उठा लूंगा और तू मेरा पीछा देखेगा परन्तु मेरा रूप दिखाई न देगा।। - तौन या० प० ३३। आ० २०। २१। २२। २३।।

(समीक्षक) अब देखिये! ईसाइयों का ईश्वर केवल मनुष्यवत् शरीर- धारी और मूसा से कैसा प्रपञ्च रच के आप स्वयम् ईश्वर बन गया। जो पीछा देखेगा, रूप न देखेगा तो हाथ से उसको ढांप दिया भी न होगा। जब खुदा ने अपने हाथ से मूसा को ढांपा होगा तब क्या उसके हाथ का रूप उसने न देखा होगा? ।।४९।।

लैव्य व्यवस्था की पुस्तक तौ०

५०- और परमेश्वर ने मूसा को बुलाया और मण्डली के तम्बू में से यह वचन उसे कहा।। कि इसराएल के सन्तानों से बोल और उन्हें कह यदि कोई तुम्में से परमेश्वर के लिये भेंट लावे तो तुम ढोर में से अर्थात् गाय बैल और भेड़ बकरी में से अपनी भेंट लाओ।। - तौन लैव्य व्यवस्था की पुस्तक, प० १। आ० १। २।।

(समीक्षक) अब विचारिये! ईसाइयों का परमेश्वर गाय बैल आदि की भेंट लेने वाला जो कि अपने लिये बलिदान कराने के लिये उपदेश करता है। वह बैल गाय आदि पशुओं के लोहू मांस का प्यासा भूखा है वा नहीं? इसी से वह अहिसक और ईश्वर कोटि में गिना कभी नहीं जा सकता किन्तु मांसाहारी प्रपञ्ची मनुष्य के सदृश है।।५०।।

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Are these things about wild people or no? And what wildness and rudeness does God take to sacrifice oxen and sprinkle blood on the altar? When the God of God also takes the sacrifice of the bulls, then why should not his devotees fill the stomach with the pleasure of the sacrifice of the bullock cow? And why not damage the world? Such bad things are said in the Bible. Because of this, you also want to make such a false accusation in the Vedas, but such things are not even mentioned in the Vedas. And it was also decided that the God of Christians was a mountain man, living on a mountain.

 

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