विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी रायपुर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित रायपुर में एकमात्र केन्द्र है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज संस्कार केन्द्र इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी के अतिरिक्त रायपुर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Sanskar Kendra Indraprastha Colony Raipur is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Sanskar Kendra Indraprastha Colony Raipur is the only controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Chhattisgarh. We do not have any other branch or Centre in Raipur. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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एकादश समुल्लास भाग -15

न वेत्ति यो यस्य गुणप्रकर्षं स तस्य निन्दां सततं करोति ।
यथा किराती करिकुम्भजाता मुक्ता परित्यज्य बिभर्ति गुञ्जा ।।

यह किसी कवि का श्लोक है।

जो जिस का गुण नहीं जानता वह उस की निन्दा निरन्तर करता है। जैसे जंगली भील गजमुक्ताओं को छोड़ गुञ्जा का हार पहिन लेता है वैसे ही जो पुरुष विद्वान्, ज्ञानी, धार्मिक सत्पुरुषों का संगी, योगी, पुरुषार्थी, जितेन्द्रिय सुशील होता है वही धर्मार्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त होकर इस जन्म और परजन्म में सदा आनन्द में रहता है। यह आर्यावर्त्तनिवासी लोगों के मत विषय में संक्षेप से लिखा है। इस के आगे जो थोड़ा सा आर्यराजाओं का इतिहास मिला है इस को सब सज्जनों को जनाने के लिये प्रकाशित किया जाता है। अब आर्यावर्त्तदेशीय राजवंश कि जिस में श्रीमान् महाराज ‘युधिष्ठिर’ से लेके महाराज ‘यशपाल’ पर्यन्त हुए हैं उस इतिहास को लिखते हैं। और श्रीमान् महाराज ‘स्वायम्भुव मनु जी’ से लेके महाराजा ‘युधिष्ठिर’ पर्यन्त का इतिहास महाभारतादि में लिखा ही है और इस से सज्जन लोगों को इधर के कुछ इतिहास का वर्त्तमान विदित होगा। यद्यपि यह विषय विद्यार्थी सम्मिलित ‘हरिश्चन्द्रचन्द्रिका’ और ‘मोहनचन्द्रिका’ जो कि पाक्षिकपत्र श्रीनाथद्वारे से निकलता था जो राजपूताना देश मेवाड़ राज उदयपुर, चितौड़गढ़ में सब को विदित है; यह उस से हम ने अनुवाद किया है। यदि ऐसे ही हमारे आर्य सज्जन लोग इतिहास और विद्या पुस्तकों का खोज कर प्रकाश करेंगे तो देश को बड़ा ही लाभ पहुंचेगा। उस पत्र सम्पादक महाशय ने अपने मित्र से एक प्राचीन पुस्तक जो कि संवत् विक्रम के १७८२ (सत्रह सौ बयासी) का लिखा हुआ था, उस से ग्रहण कर अपने संवत् १९३९ मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष १९-२० किरण अर्थात् दो पाक्षिक-पत्रें में छापा है सो निम्न लिखे प्रमाणे जानिये।

आर्य्यावर्त्तदेशीय राजवंशावली

इन्द्रप्रस्थ में आर्य लोगों ने श्रीमन्महाराज ‘यशपाल’ पर्यन्त राज्य किया। जिन में श्रीमन्महाराजे ‘युधिष्ठिर’ से महाराजे ‘यशपाल’ तक वंश अर्थात् पीढ़ी अनुमान १२४ (एक सौ चौबीस राजा); वर्ष ४१५७, मास ९, दिन १४, समय में हुए हैं।

इनका ब्यौरा-

राजा- आर्यराजा शक-१२४ वर्ष-४१५७ मास-९ दिन-१४

श्रीमन्महाराजे युधिष्ठिर वंश अनुमान पीढ़ी ३०, वर्ष १७७०, मास ११, दिन १० इनका विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ राजा युधिष्ठिर ३६ ८ २५

२ राजा परीक्षित ६० ० ०

३ राजा जनमेजय ८४ ७ २३

४ राजा अश्वमेध ८२ ८ २२

५ द्वितीयराम ८८ २ ८

६ छत्रमल ८१ ११ २७

७ चित्ररथ ७५ ३ १८

८ दुष्टशैल्य ७५ १० २४

९ राजा उग्रसेन ७८ ७ २१

१० राजा शूरसेन ७८ ७ २१

११ भुवनपति ६९ ५ ५

१२ रणजीत ६५ १० ४

१३ ऋक्षक ६४ ७ ४

१४ सुखदेव ६२ ० २४

१५ नरहरिदेव ५१ १० २

१६ सुचिरथ ४२ ११ २

१७ शूरसेन (दूसरा) ५८ १० ८

१८ पर्वतसेन ५५ ८ १०

१९ मेधावी ५२ १० १०

२० सोनचीर ५० ८ २१

२१ भीमदेव ४७ ९ २०

२२ नृहरिदेव ४५ ११ २३

२३ पूर्णमल ४४ ८ ७

२४ करदवी ४४ १० ८

२५ अलंमिक ५० ११ ८

२६ उदयपाल ३८ ९ ०

२७ दुवनमल ४० १० २६

२८ दमात ३२ ० ०

२९ भीमपाल ५८ ५ ८

३० क्षेमक ४८ ११ २१

राजा क्षेमक के प्रधान विश्रवा ने क्षेमक राजा को मार कर राज्य किया। पीढ़ी १४, वर्ष ५००, मास ३, दिन १७

इनका विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ विश्रवा १७ ३ २९

२ पुरसेनी ४२ ८ २१

३ वीरसेनी ५२ १० ७

४ अनंगशायी ४७ ८ २३

५ हरिजित ३५ ९ १७

६ परमसेनी ४४ २ २३

७ सुखपाताल ३० २ २१

८ कद्रुत ४२ ९ २४

९ सज्ज ३२ २ १४

१० अमरचूड़ २७ ३ १६

११ अमीपाल २२ ११ २५

१२ दशरथ २५ ४ १२

१३ वीरसाल ३१ ८ ११

१४ वीरसालसेन ४७ ० १४

राजा वीरसालसेन को वीरमहा प्रधान ने मार कर राज्य किया। वंश १६, वर्ष ४४५, मास ५, दिन ३, इनका विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ राजा वीरमहा ३५ १० ८

२ अजितसिह २७ ७ १९

३ सर्वदत्त २८ ३ १०

४ भुवनपति १५ ४ १०

५ वीरसेन २१ २ १३

६ महीपाल ४० ८ ७

७ शत्रुशाल २६ ४ ३

८ संघराज १७ २ १०

९ तेजपाल २८ ११ १०

१० माणिकचन्द ३७ ७ २१

११ कामसेनी ४२ ५ १०

१२ शत्रुमर्दन ८ ११ १३

१३ जीवनलोक २८ ९ १७

१४ हरिराव २६ १० २९

१५ वीरसेन (दूसरा) ३५ २ २०

१६ आदित्यकेतु २३ ११ १३

राजा आदित्यकेतु मगधदेश के राजा को ‘धन्धर’ नामक राजा प्रयाग के ने मार कर राज्य किया। वंशपीढ़ी ९, वर्ष ३७४, मास ११, दिन २६ इनका विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ राजा धन्धर ४२ ७ २४

२ महिर्ष ४१ २ २९

३ सनरच्ची ५० १० १९

४ महायुद्ध ३० ३ ८

५ दुरनाथ २८ ५ २५

६ जीवनराज ४५ २ ५

७ रुद्रसेन ४७ ४ २८

८ आरीलक ५२ १० ८

९ राजपाल ३६ ० ०

राजा राजपाल को सामन्त महान्पाल ने मार कर राज्य किया। पीढ़ी १, वर्ष १४, मास ०, दिन ० इनका विस्तार नहीं है।

राजा महान्पाल के राज्य पर राजा विक्रमादित्य ने ‘अवन्तिका’ (उज्जैन) से चढ़ाई करके राजा महान्पाल को मार के राज्य किया। पीढ़ी १, वर्ष ९३, मास ०, दिन ० इन का विस्तार नहीं है।

राजा विक्रमादित्य को शालिवाहन का उमराव समुद्रपाल योगी पैठण के ने मार कर राज्य किया। पीढ़ी १६, वर्ष ३७२, मास ४, दिन २७ इन का विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ समुद्रपाल ५४ २ २०

२ चन्द्रपाल ३६ ५ ४

३ सहायपाल ११ ४ ११

४ देवपाल २७ १ २८

५ नरसिहपाल १८ ० २०

६ सामपाल २७ १ १७

७ रघुपाल २२ ३ २५

८ गोविन्दपाल २७ १ १७

९ अमृतपाल ३६ १० १३

१० बलीपाल १२ ५ २७

११ महीपाल १३ ८ ४

१२ हरीपाल १४ ८ ४

१३ सीसपाल१ ११ १० १३

१४ मदनपाल १७ १० १९

१५ कर्मपाल १६ २ २

१६ विक्रमपाल २४ ११ १३

राजा विक्रमपाल ने पश्चिम दिशा का राजा (मलुखचन्द बोहरा था) इन पर चढ़ाई करके मैदान में लड़ाई की इस लड़ाई में मलुखचन्द ने विक्रमपाल को मार कर इन्द्रप्रस्थ का राज्य किया। पीढ़ी १०, वर्ष १९१, मास १, दिन १६ इनका विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ मलुखचन्द ५४ २ २०

२ विक्रमचन्द १२ ७ १२

३ अमीनचन्द२ १० ० ५

४ रामचन्द १३ ११ ८

५ हरीचन्द १४ ९ २४

६ कल्याणचन्द १० ५ ४

७ भीमचन्द १६ २ ९

८ लोवचन्द २६ ३ २२

९ गोविन्दचन्द ३१ ७ १२

१० रानी पद्मावती३ १ ० ०

रानी पद्मावती मर गई। इसके पुत्र भी कोई नहीं था। इसलिये सब मुत्सद्दियों ने सलाह करके हरिप्रेम वैरागी को गद्दी पर बैठा के मुत्सद्दी राज्य करने लगे। पीढ़ी

१- किसी इतिहास में भीमपाल भी लिखा है।

२- इनका नाम कहीं मानकचन्द भी लिखा है।

३- यह पद्मावती गोविन्दचन्द की रानी थी।

४, वर्ष ५०, मास ०, दिन २१ हरिप्रेम का विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ हरिप्रेम ७ ५ १६

२ गोविन्दप्रेम २० २ ८

३ गोपालप्रेम १५ ७ २८

४ महाबाहु ६ ८ २९

राजा महाबाहु राज्य छोड़ के वन में तपश्चर्या करने लगे। यह बंगाल के राजा आवमीसेन ने सुन के इन्द्रप्रस्थ में आके आप राज्य करने लगे। पीढ़ी १२, वर्ष १५१, मास ११, दिन २ इनका विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ राजा आधीसेन १८ ५ २१

२ विलावलसेन १२ ४ २

३ केशवसेन १५ ७ १२

४ माधवसेन १२ ४ २

५ मयूरसेन २० ११ २७

६ भीमसेन ५ १० ९

७ कल्याणसेन ४ ८ २१

८ हरीसेन १२ ० २५

९ क्षेमसेन ८ ११ १५

१० नारायणसेन २ २ २९

११ लक्ष्मीसेन २६ १० ०

१२ दामोदरसेन ११ ५ ९

राजा दामोदरसेन ने अपने उमराव को बहुत दुःख दिया। इसलिए राजा के उमराव दीपसिह ने सेना मिला के राजा के साथ लड़ाई की। उस लड़ाई में राजा को मार कर दीपसिह आप राज्य करने लगे। पीढ़ी ६, वर्ष १०७, मास ६, दिन २२ इन का विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ दीपसिह १७ १ २६

२ राजसिह १४ ५ ०

३ रणसिह ९ ८ ११

४ नरसिह ४५ ० १५

५ हरिसिह १३ २ २९

६ जीवनसिह ८ ० १

राजा जीवनसिह ने कुछ कारण के लिये अपनी सब सेना उत्तर दिशा को भेज दी। यह खबर पृथ्वीराज चह्वाण वैराट के राजा सुनकर जीवनसिह के ऊपर चढ़ाई करके आये और लड़ाई में जीवनसिह को मार कर इन्द्रप्रस्थ का राज्य किया। पीढ़ी ५, वर्ष ८६, मास ०, दिन २० इनका विस्तार-

आर्यराजा वर्ष मास दिन

१ पृथिवीराज १२ २ १९

२ अभयपाल १४ ५ १७

३ दुर्जनपाल ११ ४ १४

४ उदयपाल ११ ७ ३

५ यशपाल ३६ ४ २७

राजा यशपाल के ऊपर सुलतान शाहबुद्दीन गौरी गढ़ गजनी से चढ़ाई करके आया और राजा यशपाल को प्रयाग के किले में संवत् १२४९ साल में पकड़ कर कैद किया। पश्चात् ‘इन्द्रप्रस्थ’ अर्थात् दिल्ली का राज्य आप (सुलतान शहाबुद्दीन) करने लगा। पीढ़ी ५३, वर्ष ७४५, मास १, दिन १७ इन का विस्तार बहुत इतिहास पुस्तकों में लिखा है, इसलिए यहां नहीं लिखा।

इसके आगे बौद्ध जैनमत विषय में लिखा जायेगा।

इति श्रीमद्दयानन्दसरस्वती स्वामिकृते सत्यार्थप्रकाशे सुभाषाविभूषित आर्यावर्त्तीय मतखण्डन मण्डनविषय
एकादश समुल्लास सम्पूर्ण ।।११।।

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वण्डरलैण्ड वाटरपार्क के सामने, DW-4, इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी
होण्डा शोरूम के पास, रिंग रोड नं.-1, रायपुर (छत्तीसगढ़) 
हेल्पलाइन : 9109372521
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राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
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नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
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Helpline No.: 9109372521
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Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
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Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
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The Aryavartesadiya dynasty writes the history in which Shri Maharaj has taken from Yudhishthira to Maharaja Yashpal. And the history of the Maharaja 'Yudhishthira' till the time of Shri Maharaj 'Swayambhuva Manu ji' is written in Mahabharatadi and from this the gentlemen will know the present history of some place here. However, this subject included the students 'Harishchandra Chandrika' and 'Mohan Chandrika' which originated from the fortnightly paper Srinathwar.

 

 

 

 

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